हमारा मुख्य उद्देश्य जैन तीर्थों की जानकारी सभी भव्यजनो को आसानी से उपलब्ध कराना है ! यहाँ तीर्थ पर निवास स्थान और कैसे पहुंचे की जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी, आप तीर्थ के बारे में कोई भी जानकारी को कमेंट में लिख कर पूछ सकते है या मेल कर सकते है ! आपका मित्र सुलभ जैन (बाह)
Friday, 17 February 2017
Thursday, 9 February 2017
श्रेयांस गिरी, अतिशय जैन तीर्थ, नचना, पन्ना, म.प्र.
जैन तीर्थस्थल परिचय
🚌 संख्या 9⃣
श्रेयांस गिरी, अतिशय जैन तीर्थ, नचना, पन्ना, म.प्र.
🍂 आज से कई वर्ष पूर्व सुप्रसिद्ध जैन मुनि विमल सागर जी महाराज अपने प्रवास के क्रम में अचानक नचना पहुंचे। मध्यप्रदेश के पन्ना जिला स्थित इस क्षेत्र में पहुंचने के लिए जैसे उन्हें ईश्वरीय प्रेरणा हुई हो।
वहां उन्हें शीरा पहाड़ की कंदराओं में कई जैन तीर्थंकरों की पाषाण प्रतिमाएं मिलीं। पुरातत्व विभाग और जैन समाज केविद्वानों ने उन्हें गुप्ताकाल के समकालीन बताया। एक तपोभूमि के रूप में चिन्हित होने केबाद इस स्थल का महत्व बढ़ गया। श्रद्धालुओं का आवागमन भी होने लगा। पन्ना जिले में देवेन्द्रनगर और सलेहा कस्बों केमध्य सलेहा और नागौद केबीच मुख्य सड़क से गंज से लगभग तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित नचना कभी 'जसो स्टेटÓ के अधीन था। तब यहां शेरों आदि जंगली जानवरों का वसेरा था।
🍂 विमल सागर जी को यहां पांच गुफाएं मिलीं। *गुफा क्रमांक दो में भगवान महावीर स्वामी और मगरमच्छ गुफा (मगरमच्छ केआकार की गुफा) में भगवान आदिनाथ जी की खड्गाषन मूर्ति थी।* इसी प्रकार गुफा क्रमांक एक और तीन में भी बेशकीमती जैन प्रतिमाएं थीं तो कुछ मूर्तियां गुफाओं केबाहर पहाड़ी में चट्टानों पर उकेरी गई थीं। नचना की जैन तीर्थ के रूप में प्रसिद्धी विमल सागर जी केशिष्य विराग सागर जी के यहां पहुंचने पर उत्तरोत्तर बढ़ी।
स्थानीय जैन धर्मावलंबियों का मत है कि उन्हें यहां आने की प्रेरणा अपने गुरु से प्राप्त हुई। विराग सागर जी ने इसे अतिशय क्षेत्र माना और तपोभूमि के रूप में इसका महत्व स्वीकार करते हुए सोये हुए तप को जगा दिया। इसके बाद कई वर्षों तक उन्होंने यहां चातुर्मास व्यतीत किए। इस दौरान प्रचार सामग्री भी वितरित करवाई जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया कि नचना में जैन प्रतिमाएं गुप्त काल की हैं।
🍂 उन्होंने ही शीरा पहाड़ का नामकरण श्रेयांस गिरी किया जो कि २४ जैन तीर्थंकरों में से एक हैं। इस दौरान मौजूद गुफाओं का जीर्णोंद्धार भी कराया गया। कोल आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में कुछ वर्षों पहले गुफा क्रमांक चार में स्थित लगभग एक क्विंटल वजनी भगवान आदिनाथ जी की मूर्ति चोरी हो गई थी। आक्रोशित जैन समाज ने तब बड़ा आंदोलन किया था।
🍂प्रशासन केवार्ताकारों के सुरक्षा आश्वासन के बाद विवाद थमा था। अभी भी पहाड़ खुदाई आदि को लेकर कुछ समस्याएं हैं। बावजूद इसके यह इस स्थल का ही प्रताप है कि जैन समाज इसके महत्व के अनुकूल क्षेत्र का विकास करने में लगा हुआ है। और चातुर्मास के दौरान जुटने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ वर्ष भर बनाए रखने को लगातार प्रयासरत है। इसी कारण इस निर्जन क्षेत्र में निर्माण कार्य कराए जाते रहे हैं।
संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
Tuesday, 7 February 2017
श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, आंवा, टोंक (राजस्थान)
संख्या 8
श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, आंवा, टोंक (राजस्थान)
सादर जय जिनेन्द्र ।। मैं सुलभ जैन (बाह) आज की भाव वन्दना चलते है,, राजस्थान के टोंक जिले में जयपुर—कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग पर टोंक और देवली शहरों के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग से लगभग 15 किमी दूरी पर स्थित आंवा गांव में प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर व नसियां स्थित है।
आम धारणा है कि मन्दिर का निर्माण विक्रम संवत 1223 में किया गया था। इस मन्दिर की स्थापना कुन्द—कुन्द मूल आमान्यानुसार की गई थी। उस समय यह मन्दिर गुफा में था। विक्रम संवत 1593 में भट्टारक श्री धर्मचन्द द्वारा इसमें स्थित 4 फीट श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान की पद्मासन प्रतिमा का पंचकल्याणक किया गया था।
पंचकल्याणक महोत्सव को तत्कालीन शासक श्री सूर्य सेन के संरक्षण में किया गया था तथा लाखों जैन श्रावक पंचकल्याण महोत्सव में आये थे। यह भी मान्यता है कि उस समय पंचकल्याणक में जो भक्त आये थे, उनके भोजन में उपयोग में लायी गयी मिर्च के डण्ठल का वजन लगभग 29 क्विंटल था। वर्तमान में मन्दिर में मूल प्रतिमा की गुफा की दीवारों व छत पर संगमरमर का कार्य किया गया है तथा दीवारों पर श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान के तीर्थंकर कल्याणक संगमरमर पर उकरे गये हैं।
मन्दिर के उच्च भाग में मूल प्रतिमा की प्रति प्रतिमा की स्थापना की गई है तथा अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमा भी विराजमान है। मन्दिर के अन्दर की स्थापत्यकला मनमोह लेती है। जब आप आंवा गांव से जयपुर—कोटा मार्ग पर लौटते हैं, तो मन्दिर से 4 किलोमीटर दूरी पर जैन नसियां भी स्थित है। यह छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जहां तक वाहन से व पैदल आसानी से जाया जा सकता है। जैन नसियां के मुख्य मन्दिर में मूल नायक प्रतिमा श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान की पद्मासन प्रतिमा है, जो 11.5 फीट की है। साथ ही श्री 1008 आदिनाथ भगवान व सहस्त्रफणी श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान की पद्मसान 7.5—7.5 फीट की प्रतिमाएं हैं। मुख्य मन्दिर में त्रिकाल चौबीसी है।
14 जून, 2008 में मुनी श्री 108 सुधासागर जी महाराज के सान्निध्य में भव्य पंचकल्याणक हुआ था। उस समय क्षेत्र का नाम श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सुदर्शनोदय, आंवा घोषित किया गया। जैन नसियां में सशुल्क आवास व भोजनालय है। यहां बच्चों को खेलने के लिये बाल वाटिका है। क्षेत्र में निर्माण व विकास कार्य चल रहा है। यह क्षेत्र शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर एकांत में साधना के लिये उत्तम है। सड़क: बस स्टेण्ड आंवा— 0 किलोमीटर रेलवे स्टेशन: चन्दलाई — 52 किलोमीटर यहाँ अपने साधन से जाना सुविधाजनक होगा । संकलनकर्ता सुलभ जैन (बाह) नोट: मन्दिर में दर्शन का समय: सुबह 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक । समय ऋतुओं के अनुसार बदलता रहता है । 🙏🏼
Monday, 6 February 2017
दिगंबर जैन लाल मंदिर, चाँदनी चौक, दिल्ली
जैन तीर्थस्थल परिचय
संख्या 7स्थान: लाल मंदिर, चाँदनी चौक, दिल्ली
दिगंबर जैन मंदिर दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित है। यह जैन धर्मावलंबियों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है।यह मंदिर 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। दिगंबर जैन मंदिर को श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
दिगंबर जैन मंदिर का इतिहास
दिगंबर जैन मंदिर का निर्माण तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहां के फौजी अफसर ने करवाया था। मान्यता है कि इसका निर्माण 1526 में हुआ थी। यह मंदिर लाल पत्थर से बना है जिसके कारण इसे लाल मंदिर भी कहते हैं। शुरूआत में इसे खेती के कूचे का मंदिर और लश्करी का मंदिर कहा जाता था।
🚩1656 से पहले इस मंदिर के स्थान पर मुगल सैनिकों की छावनी हुआ करती थी। कहा जाता है कि सेना के एक जैन अधिकारी ने दर्शन के लिए यहां पर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा रखी थी। सेना के दूसरे जैन अधिकारियों और सैनिकों को जब इसका पता चला तो वे भी श्रद्धाभाव से दर्शन के लिए आने लगे। धीरे-धीरे छोटे से मंदिर के रूप में यह जगह विकसित हुई और फिर बाद में 1935 में नवीनीकरण के द्वारा इस मंदिर को भव्य रूप दिया गया। इस नवीनीकरण में मंदिर में लाल दीवारों का निर्माण हुआ।
दिगंबर जैन मंदिर की मान्यता
बगैर पुजारी वाले इस मंदिर में पूजा करने का अपना एक विधान है। यहां श्रद्धालु स्वयं पूजा करते हैं। परंतु पूजा की सामग्री आदि मामलों में उन्हें सहयोग करने के लिए एक व्यक्ति अवश्य होता है, जिसे व्यास कहा जाता है। दिल्ली भारत की राजधानी है और इसलिए इस मंदिर का महत्त्व अपने आप ही बढ़ जाता है।
संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र नवागढ़ (नाबई), जिला ललितपुर
जैन तीर्थस्थल परिचय
संख्या 6⚜बुंदेलखंड यात्रा⚜
श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र नवागढ़ (नाबई), जिला ललितपुर
श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र नाबई, प्राकृतिक सौंदर्य से पूर्ण, बुंदेलखंड की यात्रा में तृतीय स्थान पर है । इस क्षेत्र के गौरवशाली और सुंदर अतीत से पता चलता है, कि यह स्थान कला के प्राचीन सुंदर प्रतीकों से भरा हुआ है ! मूर्तियों और अन्य साक्ष्यों पर शिलालेख से पता लगता है कि इस क्षेत्र के मंदिरों का निर्माण पदशाह के उत्तराधिकारियों द्वारा बनाया गया था ! ऐसा मानना है कि यह क्षेत्र 12 वीं सदी में अत्यधिक समृद्धशाली था ।
यह क्षेत्र जिसे नवागढ़ भी कहा जाता है, एक छोटे से गाँव नबाई में स्थित है। यह गांव तीन दिशाओं से एक सुंदर छोटी नदी से घिरा हुआ है !
इस क्षेत्र का मुख्य मंदिर एक विशाल पहाड़ी के नीचे एक तहखाने (भूमिगत स्थान) में स्थित है। यहां अतीत में, इस पहाड़ी पर एक भव्य मंदिर की उपस्थिति का संकेत है, जो चट्टानों पर बड़ा आयताकार टुकड़ों से घिरा हुआ है, इन चट्टान के अवशेष मंदिर के खंडहर हो सकते है। ऐसा माना जाता है !
पहाड़ी के केन्द्र में, एक तहखाने (भूमिगत स्थान) पर 6 फुट ऊँची भगवान अरहनाथ की शानदार चमत्कारी खड्गासन प्रतिमा मौजूद है, नीले रंग के पत्थर की इस खूबसूरती प्रतिमा पर वि.स. 1202 होने के प्रमाण है ! वर्तमान में, इस पहाड़ी पर एक शानदार मंदिर, एक धर्मशाला और एक संग्रहालय का निर्माण किया गया है । इस संग्रहालय में कला के महत्वपूर्ण और दुर्लभ नमूनों को सुरक्षित रखा गया है !
अतिशय :- जैन और अन्य लोगों की गहरा विश्वास भगवान अरहनाथ के साथ जुड़ा हुआ है। प्राकृतिक आपदाओं, गंभीर बीमारी के समय लोग दूर दूर से भगवान अरहनाथ की पूजा करने के लिए आते हैं वर्तमान में भी ग्रामीण लोग कोई भी नया काम शुरू करने से पहले यहां आते हैं।
एक बार गर्मियों में यहाँ पानी अत्यधिक की कमी हुई थी, फिर भगवान अरहनाथ की विशेष पूजा-अर्चना के बाद से यहाँ पानी का स्तर अचानक 15 फुट तक बढ़ गया था ।
निकटवर्ती स्थान :
अतिशय क्षेत्र : - पपौरा जी 30 कि.मी.
सिद्ध क्षेत्र : - आहारजी 55 कि.मी., द्रोणगिरि 55 कि.मी. बड़ागाँव 15 कि.मी.
नजदीकी शहर : टीकमगढ़ 30 किमी, ललितपुर से 60 किमी, महरौनी 20 किमी,
एक बार इस अतिशय क्षेत्र पर आकर दर्शन का लाभ अवश्य ले !
संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
पवा, अहार, पपौरा, नाबई, सोनागिर, नैनागिर,
खजुराहो, थूबोन चंदेरी, देवगढ़ अरू द्रोणागिर।
बंधा, मदनपुर और करगुवां, जैन तीर्थ हैं भारी
तीर्थ क्षेत्र बुंदेलखण्ड के अनुपम अतिशय भारी॥
श्री 1008 अजितनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बंधाजी (मध्य प्रदेश)
जैन तीर्थस्थल परिचय
संख्या 5सादर जय जिनेन्द्र मैं सुलभ जैन (बाह) ।। बुंदेलखंड की यात्रा आगे बढ़ते हुए आज दर्शन करते है,
श्री 1008 अजितनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बंधाजी (मध्य प्रदेश)
🚩 श्री बंधाजी अतिशय क्षेत्र के एक तहखाने में 900 वर्ष प्राचीन काले रंग की चमत्कारी मूलनायक भगवान अजितनाथ की प्रतिमा स्थापित है । पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार इस क्षेत्र के 1500 से अधिक वर्षों से प्राचीन होने के साक्ष्य है। यह स्थान प्राकृतिक और शांतिपूर्ण वातावरण से भरपूर खूबसूरत पहाड़ियों के बीच में स्थित है।
'बुंदेलखंड क्षेत्र' में सात भोंयरे (भूमिगत स्थान) बहुत प्रसिद्ध हैं ! जो पावा, देवगढ़, सेरों, करगुवां, बंधा, पपौरा और थूवोन में स्थित हैं ! कहा जाता है, यह सात 7 भोंयरे दो भाइयों अर्थात 'देवपत' और 'खेवपत' द्वारा निर्माण किये गए है ।
यह क्षेत्र पुरातत्व की दृष्टि से काफी धनी है। यहाँ पर जैन धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य - विभिन्न जगहों, तालाबों, प्राचीन किलों, और पुराने मंदिरों में जहां तहाँ प्राप्त होती रहती है ! ऐसा मानना है, मुस्लिम शासकों के समय, इस जगह पर चंदेल राजाओं के द्वारा भोंयरे (तहखाने) का निर्माण किया गया था (सुरक्षित रूप से मूर्तियों को रखने के लिए) ।
अतिशय: -
(१) जब मुगल काल के दौरान जब हमलाकरियों ने मूर्तियों को तोडा, तो उन्हें यहाँ चमत्कारी शक्ति का एहसास हुआ और सभी विध्वंसक एक अदृश्य शक्ति के अधीन होकर यहाँ फंस गए, फिर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, और सब उस अदृश्य शक्ति से क्षमा मांगकर चले गये ! उनके इस अदृश्य बंध के कारण ही इस जगह को ' बंधा जी ' के रूप में कहा जाता है !
(२) वर्ष 1953 में आचार्य श्री महावीर कीर्तिजी अपने संघ के साथ यहां आये थे ! उस समय कुएं में पानी नहीं था । लेकिन आचार्यश्री ने 'अभिषेक के जल' को छिड़का, त्यों ही कुए में जल भर गया ! उस समय के बाद से पानी इस स्थान पर उपलब्ध है।
(३) यहाँ भोंयरा (भूमिगत स्थान) में एक विशाल सर्प रहता है इसे यहाँ अक्सर देखा जा सकता है और इस वजह से जो मनपूर्वक भक्ति से परिपूर्ण नही होते वो इस तहखाने के अंदर प्रवेश करने में सक्षम नहीं हो पाते ।
(४) बंधा जी में रात्रि के समय अक्सर भक्ति गीत, नृत्य और अन्य संगीत वाद्ययंत्र की आवाज़ सुनने को मिलती है ।
(५) एक बार संवत १८९० में एक कलाकार मूर्तियों को बेचने के लिए के लिए 'बम्होरी' जा रहा था । अचानक बैलगाड़ी बम्होरी के एक बड़े पीपल के पेड़ के पास उसकी गाडी का ठहर गयी । बहुत दिनों तक जब सभी प्रयास व्यर्थ साबित हो गए तो उसने फैसला बंधाजी की ओर बढना शुरू कर दिया। यह मूर्ति अभी भी बंधाजी के विशाल मंदिर में स्थापित है ।
अतिशय बंधाजी में मूलनायक भगवान अजितनाथ की मूर्ति प्राचीन भोंयरा में स्थापित है । यह काले रंग की २-१/२ फीट ऊंची पद्मासन प्रतिमा है! मूर्ति काफी प्राचीन चमत्कारी निर्मल और शांत है। इस मूर्ति के दोनों किनारों पर २ फीट की भगवान आदिनाथ और भगवान सम्भवनाथ की उच्च खड्गासन मूर्तियों स्थापित हैं । विशाल प्राचीन मंदिर को भोंयरा के पास बनाया गया है, यह 65 फुट ऊंचा है । घने जंगल में इस मंदिर का निर्माण किया गया था । १८वीं सदी में निर्मित यह मंदिर काफी कलात्मक होती है।
क्षेत्र में एक और भोंयरा (भूमिगत स्थान) के अस्तित्व की संभावना है। इस क्षेत्र में जब कोई भी अपनी जगह से इस चट्टान को हटाने की या इस चट्टान पर बैठता है तो बीमारीग्रसित हो जाता है । उस काल में, अन्य विद्वानों ने आचार्य महावीर कीर्ति को यह बात बताई थी, यहाँ एक भोंयरा (भूमिगत स्थान) होने की संभावना है एवं कुछ समय के बाद यह स्वयं पृथ्वी से बाहर आ जायेगा ।
वार्षिक मेला : माघ शुक्ल से १५ फाल्गुन कृष्ण (२- ३दिन) (आचार्य श्री का कुएं में ' अभिषेक जल ' छिड़काव) जब एक ही बार पानी से भर गया था ! यह मेला इसकी वर्षगांठ के रूप में आयोजित किया जाता है।)
निकटवर्ती अतिशय क्षेत्र : - पपोराजी, जिला - टीकमगढ़, करगुवांजी, जिला - झाँसी, क्षेत्रपालजी, जिला - ललितपुर
निकटवर्ती सिद्ध क्षेत्र : - आहारजी, जिला - टीकमगढ़, सोनगिरिजी, जिला - दतिया, पावगिरिजी, जिला - ललितपुर, द्रोणागिरिजी, जिला - छतरपुर
एक बार इस पावन धरा पर दर्शन का लाभ अवश्य ले !
संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
पवा, अहार, पपौरा, नाबई, सोनागिर, नैनागिर,
खजुराहो, थूबोन चंदेरी, देवगढ़ अरू द्रोणागिर।
बंधा, मदनपुर और करगुवां, जैन तीर्थ हैं भारी ।
तीर्थ क्षेत्र बुंदेलखण्ड के अनुपम अतिशय भारी॥
श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थ क्षेत्र, बिजौलिया
जैन तीर्थस्थल परिचय
संख्या 4मैं सुलभ जैन (बाह) आज की भाव वंदना में आपको लिए चलते है श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थ क्षेत्र, बिजौलिया
बूंदी—चित्तौड़गढ़ राष्ट्रीय राज्यमार्ग पर स्थित इस क्षेत्र में विक्रम संवत् 1226 का एक शिलालेख है, जिसके अनुसार भगवान पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान प्राप्त होने से पूर्व कमठ द्वारा इसी स्थान पर उपसर्ग किया गया था। इसके बाद भगवान पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह शिलालेख विश्व का सबसे विशालतम शिलालेख माना जाता है।
इस क्षेत्र पर कुल 11 मन्दिर हैं। एक चौबीसी, समवाशरण रचना व 2 मानस्तम्भ हैं। यहां संतशाला व गणधार परमेष्ठी मन्दिर भी हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार उज्जैन के व्यापारी जब यहां यात्रा करते हुये आये, तो उन्हें प्रतिमाओं के बारे में सपना आया। अगले दिन उनके द्वारा निश्चित स्थान पर खुदाई की गई और प्रतिमायें निकाली गईं। इसके बाद इस मन्दिर का निर्माण करवाया गया।
एक मान्यता यह भी है कि सन् 1858 में कुछ अंग्रेज व्यक्तियों ने शिलालेख के नीचे खजाना होने के अनुमान के कारण उसे खोदने का प्रयास किया, लेकिन जैसे ही उनके द्वारा ऐसा किया जाने लगा, तो उनके उपर मधुमक्खियों ने हमला कर दिया और शिलालेख से दूध की धारा बहने लगी।
चैत्र बृद्व चतुर्थी को यहां वार्षिक मेला होता है। क्षेत्र में ठहरने का स्थान व भोजनाशाला सशुल्क उपलब्ध है।
मन्दिर में दर्शन का समय:
मन्दिर सुबह 5 बजे से सांयकाल 9 बजे तक खुलता है।
कैसे पहुंचें (How To Reach)
सड़क: बिजौलिया 2 किमी
रेलव स्टेशन उपरमाल 12 किमी
संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
क्षेत्र पर सार्वजनिक साधन उपलब्ध है । निजी वाहन से यात्रा किया जाना उचित है।
खन्दारगिरी अतिशय क्षेत्र, गुना, म.प्र
जैन तीर्थस्थल परिचय
संख्या 3सादर जय जिनेन्द्र,, मैं सुलभ जैन (बाह) ।। आज की भाववंदना में एक ऐसे तीर्थ पर चलते है, जिस स्थान या पर्वत के लिए ऐसा माना जाता है, कि यहाँ वर्ष में एक बार चन्दन कि बूँदें पूरी पहाड़ी पर गिरती है !
स्थान - खन्दारगिरी अतिशय क्षेत्र, गुना, म.प्र.
जिला गुना के ऐतिहासिक शहर चंदेरी से एक किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी क्षेत्र में खन्दारगिरी स्थित है। यहाँ मूर्ति कला के एक अनूठे उदाहरण के साथ पहाड़ियों पर छह गुफाओं में तीर्थंकरो की अति सुंदर मूर्तियों हैं ।
गुफा नंबर २ में भगवान आदिनाथ की एक उच्च खड्गासन प्रतिमा बहुत ही आकर्षक और चमत्कारी है। इन मूर्तियों को १३ वीं सदी से १६ वीं सदी के दौरान पहाड़ियों की चट्टानों को काटकर बनाया गया है !
यह पहाड़िया विंध्याचल पर्वत श्रृंखला का एक हिस्सा हैं।
घाटी में यहाँ चार मंदिरों का समूह हैं। प्राचीन समय में यह जगह जैन कला, संस्कृति और दर्शन का केंद्र थी, भट्टारकस यहाँ रहते थे। यह जगह ऐतिहासिक शहर चंदेरी से एक किलोमीटर दूर जंगलों में एक बहुत ही आकर्षक जगह से घिरे प्राकृतिक पहाड़ियों पर स्थित है ।
यहाँ दो छोटी धर्मशालाए हैं। आधुनिक सुविधाओं के साथ एक धर्मशाला चौबीसी बारा मंदिर, चंदेरी में उपलब्ध है।
बस - खन्दारगिरी के लिए ०६:००-२२:०० गुना और ललितपुर से उपलब्ध हैं।
ट्रेन - खन्दारगिरी से गुना रेलवे स्टेशन 160 किलोमीटर और ललितपुर रेलवे स्टेशन 40 किलोमीटर पर है !
निकटवर्ती तीर्थक्षेत्र - थूवोनजी २२ कि.मी., सैरोंजी २७ कि.मी., गोलाकोटा पचराई ५० कि.मी., देवगढ़ ६४ कि.मी.
इस पावन एवं अद्भुत धरा पर आकर दर्शन का लाभ अवश्य ले !
संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
आहार जी, टीकमगढ़ म.प्र.
जैन तीर्थस्थल परिचय
⚜बुंदेलखंड यात्रा⚜संख्या - 2
जय जिनेन्द्र ।।मैं सुलभ जैन (बाह) आज दिन रविवार की भाव वंदना में पपौरा जी के अतिशयकारी दर्शनों के बाद आपको लिए चलते है, सिद्ध परमेष्ठियों की मंगल भूमि श्री आहार जी ।। इस क्षेत्र की विस्तृत जानकारी इस प्रकार है !
आहार जी, टीकमगढ़ म.प्र.
श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र आहारजी बहुत प्राचीन पवित्र स्थान है, यह ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक पहलुओं के दृश्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ जमीन से प्राप्त हुई जैन मूर्तियों और जैन मंदिरों के प्राचीन अवशेस भारी मात्रा में यहाँ मौजूद हैं । यहाँ चट्टानों पर शिलालेख द्वारा वि. सं 1100 - 1500 के समय का उल्लेख है, यहाँ के राजा मदन वर्मदेव के नाम पर इस जगह का प्राचीन नाम मदनसागरपुर था ! मदनसागर के नाम से एक तालाब अभी भी यहाँ मौजूद है !अतिशय :- जब एक माह की व्रत के बाद, एक तपस्वी संत को यहां एक यक्षिणी द्वारा उपसर्ग किये जाने पर आहार (भोजन) मिला तभी से इस जगह का नाम आहारजी के रूप में प्रसिद्ध हो गया ! काफी इतने सारे लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यहां आते हैं।
मुख्य मंदिर एवं प्रतिमाये:- यहाँ मुख्य मंदिर श्री 1008 शांतिनाथ मंदिर जी का है ! भगवान शांतिनाथ , की प्रतिमा के दोनों तरफ भगवान कुंथुनाथ और भगवान अरहनाथ की प्रतिमाये है ! भगवान शांतिनाथ जी की 18 फीट ऊंची प्रतिमा अति मनोहर है।
मुख्य मंदिर से अलावा यहाँ अन्य 7 मंदिर हैं। जमीन के अंदर यहाँ वि.सं. 1109-2055 समयकाल के 97 भव्य मंदिर भी है !
सिद्दक्षेत्र से, 1 किमी दूर पहाड़ी की चोटी पर निर्वाण क्षेत्र (मोक्ष की जगह) है, यहाँ मदन तालाब नाम का एक छोटा सा तालाब, सिद्धों की पहाड़ी, सिद्धों की गुफा भी प्रसिद्ध हैं।
मुख्य मंदिर के आसपास तीन युगों की चौबीसी (24 तीर्थकरों की वर्तमान, भूत और भविष्य) विद्यमान है ! 12 वीं सदी में यहाँ मुख्य मंदिर का निर्माण हुआ और मूलनायक भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा वि.सं 1237 में स्थापित की गयी थी !
यह आहारजी सिद्धक्षेत्र, टीकमगढ़ से छतरपुर के बीच में सड़कमार्ग पर स्थित है ! ट्रेन मार्ग से - रेलवे स्टेशन ललितपुर 83 किमी, झांसी में 120 किमी, मऊरानीपुर 62 किमी
संकलनकर्ता
सुलभ जैन
पवा, अहार, पपौरा, नाबई, सोनागिर, नैनागिर,
खजुराहो, थूबोन चंदेरी, देवगढ़ अरू द्रोणागिर।
बंधा, मदनपुर और करगुवां, जैन तीर्थ हैं भारी
तीर्थ क्षेत्र बुंदेलखण्ड के अनुपम अतिशय भारी॥
कुण्डलपुर, दमोह, मध्य प्रदेश
जैन तीर्थस्थल परिचय 🚌
संख्या - 1⃣
आप सभी से सादर जय जिनेन्द्र🙏🏼 मैं सुलभ जैन (बाह) आज इस श्रृंखला की पहली कड़ी में आपको सुप्रसिद्ध तीर्थ कुंडलपुर जी की भाववंदना पर लिए चलते है ।🙏🏼
कुण्डलपुर भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित एक शहर है जो दमोह से ३५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक प्रमुख जैन तीर्थ स्थल है। यहाँ तीर्थंकर ऋषभदेव की एक विशाल प्रतिमा विराजमान है।
कुण्डलपुर में ६३ जैन मंदिर है। उनमें से 22वाँ मंदिर काफ़ी प्रसिद्ध है। इसी मंदिर में बड़े बाबा (भगवान आदिनाथ) की विशाल प्रतिमा है। यह प्रतिमा जी बड़े बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है और 15 फुट ऊँची हैं। यह मंदिर कुण्डलपुर का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है।
एक शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत् १७५७ में यह मंदिर फिर से भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति द्वारा खोजा गया था। तब यह मंदिर जीर्ण शीर्ण हालत में था। तब बुंदेलखंड के शासक छत्रसाल की मदद से मंदिर का पुनः निर्माण कराया गया था। आचार्य विद्यासागर इस क्षेत्र के जीर्णोद्धार के मुख्य प्रेरणा स्रोत माने जाते है।
ये कथा है प्रचलित :-
बताते हैं कि एक बार पटेरा गांव में एक व्यापारी बंजी करता था। वही प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था, जहां रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर पर ठोकर लगती थी। एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा, लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थंकर मूर्ति है।
स्वप्न में उससे मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने के लिए कहा गया, लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। उसने दूसरे दिन वैसा ही किया, बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई। जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्यध्वनियां सुनाई दीं। जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुड़कर देख लिया। और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई।
कहा जाता है कि मूर्ति को तोडऩे के लिए एक बार औरंगजेब ने अपनी सेना को भेजा, जैसे ही मूर्ति पर सेना ने पहला प्रहार किया, बड़े बाबा की मूर्ति की अंगुली से एक छोटा सा टुकड़ा उछलकर दूर जा गिरा। और दूध की धारा बहने लगी। इस पर सेना पीछे हट गई। लेकिन दोबारा वे आगे मूर्ति तोडऩे के लिए बढ़े तो मधुमक्खियों ने उन पर हमला कर दिया। जिससे उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा। बड़े बाबा की मूर्ति का टूटा हुआ यह हिस्सा अब भी यहां देखा जा सकता है।
अभी हाल में ही महामस्तिकाभिषेक महोत्सव में श्रद्धालुओं ने कुण्डलपुर सिद्ध क्षेत्र में बड़ेबाबा के महामस्तिकाभिषेक समारोह में सम्मलित होकर बडेबाबा का महामस्तिकाभिषेक करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
पहुँचने का तरीका-
सड़क मार्ग- यह सभी दिशाओं से सड़कों से जुड़ा हुआ है। कुण्डलपुर के आस-पास के शहर हटा दमोह, सागर, छतरपुर, जबलपुर से नियमित बस सेवा है।
एयरपोर्ट- कुण्डलपुर से लगभग १५५ किलोमीटर की दूरी पर निकटतम हवाई अड्डा, जबलपुर है।
रेल- कुण्डलपुर तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन से 37 किलोमीटर की दूरी पर दमोह रेलवे स्टेशन है
संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
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